ढल चुकी शाम अभी, धुंधला धुंधला सा चाँद नज़र आता है
जहाँ आशियाना था कभी, वहां मकान नज़र आता है
मौत ऐसी बेचीं कुछ दुकानदारों ने,
हर धड़कते दिल में एक शमशान नज़र आता है
ना मिली लाश कोई, ना धुआं नज़र आता है
कफं का भी ना कोई मोहताज नज़र आता है
हमने लाख कोशिश की, कि मिले निशाँ कोई
बस बिखरा बिखरा सा कुछ आसमान नज़र आता है
Tuesday, January 5, 2010
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