Sunday, May 13, 2012

गुजारिश

मेरे  होंठों ने मेरी आंखों से गुजारिश की है
बहुत  प्यासे हें; मत रोको इसे, तुमने जो बारिश  की है 
रेत  सी बंजर है मेरे दिल की जमीन 
मेरे अपनों ने ही क्यूंकि ये साजिश की है

ये जो बारिश है बहूत मैली है 
गर्द इसमें उस दरवाज़े के पीछे फैली चादर की है 
मेरी जलती सिसकियों का धुंआ है, और इन खाली आँखों की मूरत  भी है 
ये मटमैली है, थोड़ी काली है, मगर सच्ची तो है 
रंग भरी दुनिया का आईना तो बहूत ही बदसूरत है  

इसे ना थमने दो, यूं ही बहने दो 
इस प्यासे दिल को हर उस बूँद की बहूत ज़रुरत है 
जब जो छूती है मेरी आँहों को, तो यूं लगता है 
जैसे गैरों से भरी इस दुनिया में कोई मुझे समझता है 

मेरी आँखों ने ये सुन  मेरे होंठों से गुज़ारिश की है 
हर वो दरिया अब सूखा है जिससे मैंने ये बारिश की है 
मैं समझती हूँ तुम्हे लेकिन अब बेबस  हूँ 
तेरे अपनों ने ही क्यूंकि ये साजिश की है 

Saturday, January 21, 2012

ज़िन्दगी, यूं हंसती हो क्यूं?

मैं हैरान हूँ तुम्हे यूं जिंदा देख के,
ग़म के दरवाज़े पे यह पहरा देख के।
चेहेकती हो तो मेरे दिल की धड़कन थमे,
पर तड़पती भी हो तो खूबसूरत हो तुम।

कभी पास से और कभी दूर से,
देखा है मैंने तुम्हे हर ओर से;
दोज़ख में सिसकियाँ भरती रही,
ख्वाब जन्नत के ही मगर देखती थी तुम।

सब कहते थे मुझको की मेरी हो तुम,
पर गैर सी सदा मुझको लगती हो तुम।
कोई अपना यूं दर्द में हँसता है भला?
क्या कहता है की यह तो बस एक इम्तिहान था?

सब हार के मैं थोडा थक सा गया हूँ,
और तुम कहती हो मुझको मैं कामयाब हूँ?
मेरी आँखों में तो अब आंसूं भी नहीं,
ज़िन्दगी, तुम मगर यूं हंसती हो क्यूं?