Sunday, May 13, 2012

गुजारिश

मेरे  होंठों ने मेरी आंखों से गुजारिश की है
बहुत  प्यासे हें; मत रोको इसे, तुमने जो बारिश  की है 
रेत  सी बंजर है मेरे दिल की जमीन 
मेरे अपनों ने ही क्यूंकि ये साजिश की है

ये जो बारिश है बहूत मैली है 
गर्द इसमें उस दरवाज़े के पीछे फैली चादर की है 
मेरी जलती सिसकियों का धुंआ है, और इन खाली आँखों की मूरत  भी है 
ये मटमैली है, थोड़ी काली है, मगर सच्ची तो है 
रंग भरी दुनिया का आईना तो बहूत ही बदसूरत है  

इसे ना थमने दो, यूं ही बहने दो 
इस प्यासे दिल को हर उस बूँद की बहूत ज़रुरत है 
जब जो छूती है मेरी आँहों को, तो यूं लगता है 
जैसे गैरों से भरी इस दुनिया में कोई मुझे समझता है 

मेरी आँखों ने ये सुन  मेरे होंठों से गुज़ारिश की है 
हर वो दरिया अब सूखा है जिससे मैंने ये बारिश की है 
मैं समझती हूँ तुम्हे लेकिन अब बेबस  हूँ 
तेरे अपनों ने ही क्यूंकि ये साजिश की है 

1 comment:

Elixir of life (dr_nidhi) said...

I dunno what to say.. a touching beautiful creation...would resonate with millions of hearts and souls...I am really stuck here I guess I don't have words to express how deep and poignant those verses are...

And finally is saal ka khaata khul gaya ...:)